Homeप्रदेशमऊमऊ में वनदेवी के रूप में विद्यमान हैं मां सीता

मऊ में वनदेवी के रूप में विद्यमान हैं मां सीता

मां तमसा के पावन तट पर स्थित मऊ जनपद एक तरफ जहां अपनी टेक्सटाइल उद्योग के लिए जाना जाता है तो वहीं दूसरी तरफ अपने साथ कई धार्मिक मान्यताओं को भी समेटे हुए है। जनपद मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में प्रकृति के मनोरम एवं रमणीय परिवेश में स्थित कहिनौर मां सीता का एक प्रख्यात मंदिर है।चूंकि यह मंदिर प्राचीन काल में निर्जन वन में स्थित था इसीलिए इस मंदिर को मां वनदेवी के नाम से भी जानते हैं। आज यह स्थान श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। वनदेवी मन्दिर अपनी प्राकृतिक गरिमा के साथ-साथ पौराणिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का प्रेरणा स्रोत भी है। नवरात्रि के पावन पर्व पर मां के इस मंदिर की अलौकिक छटा और भी निराली हो जाती है।

भगवान राम के पुत्रों लव और कुश की जन्मस्थली है वनदेवी मंदिर

वाल्मीकि रामायण के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का आश्रम मां तमसा के तट पर स्थित था। यहीं के निर्जन वन में निवास कर महर्षि वाल्मीकि अपनी तपस्या करते थे। एक बार भगवान राम ने माता सीता का त्याग किया तब ऐसी मान्यता है की उनके लक्ष्मण ने माता को दुखित मन से मां सीता को इसी निर्जन वन में छोड़ दिया था। संध्या पूजन के समय महर्षि वाल्मीकि ने जब एक महिला का करुण क्रंदन सुना तो उन्होंने माता सीता को अपनी कुटिया में आश्रय दे दिया। धीरे धीरे समय बीतता गया और माता सीता के गर्भ से एक पुत्र की उत्पत्ति हुई जिसका नाम महर्षि वाल्मीकि ने लव रखा। एक दिन लव को महर्षि के सानिध्य में छोड़कर माता सीता जलाशय की तरफ गईं इधर महर्षि जब ध्यान साधना में लीन हो गए तो कोई पशु उन्हें नुकसान न पहुंचा दे इस भय से उन्होंने लव को अपने साथ ले लिया। उधर जब महर्षि ने ध्यान तोड़ा तो कुटिया में लव को न देखकर उन्होंने कुश से एक बालक की उत्पत्ति कर दी। जब मां सीता वापस कुटिया में आईं तो महर्षि ने उन्हें सारा वृतांत सुनाया। इस प्रकार से लव और कुश की उत्पत्ति हुई।जनश्रुतियों एवं भौगोलिक साक्ष्यों के आधार पर यह स्थान महर्षि बाल्मिकी की साधना स्थली के रूप में विख्यात रहा है।

धरती के अंदर से हुई मां की उत्पत्ति

जनश्रुति के अनुसार नरवर गांव के रहने वाले सिधनुआ बाबा को स्वप्न दिखाई दिया कि देवी की प्रतिमा जंगल में जमीन के अन्दर दबी पड़ी है। देवी ने बाबा को उक्त स्थल की खुदाई कर पूजा पाठ का निर्देश दिया। स्वप्न के अनुसार बाबा ने निर्धारित स्थल पर खुदाई प्रारम्भ की तो उन्हें मूर्ति दिखाई दी। बाबा के फावड़े की चोट से मूर्ति क्षतिग्रस्त भी हो गयी। बाबा जीवन पर्यन्त वहाँ पूजन-अर्चन करते रहे। वृद्धावस्था में उन्होंने उक्त मूर्ति को अपने घर लाकर स्थापित करना चाहा लेकन वे सफल नहीं हुए और वहीं उनका प्राणांत हो गया। बाद में वहाँ मन्दिर बनवाया गया। वनदेवी मन्दिर अनेक साधु-महात्मा एवं साधकों की तपस्थली भी रहा है।

चैत्र नवरात्रि में अत्यधिक अलौकिक होती है मां के मंदिर की छटा

यह स्थान मात्र क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आस पास के जनपदों में भी श्रद्धा का केंद्र है। यहां स्थित ब्रह्मचारी बाबा की कुटी में भी लोगो का आस्था और विश्वास है।मंदिर के चारो ओर चैत्र नवरात्रि में अंतिम तीन दिनों में मेले का भव्य आयोजन होता है। मान्यता है की इस स्थान से मांगी हुई मुरादे निश्चित पूरी होती है। यहां से कोई कभी भी निराश नहीं होता है। वैसे तो वर्षभर लेकिन विशेषकर नवरात्रि में भक्त अपनी मां श्रद्धा का चढ़ावा चढ़ाने जरूर आते हैं।

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